वर्तमान में छात्र राजनीति का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। छात्र राजनीति दिशाहीन होती जा रही है छात्र नेताओं के पास ना कोई मुद्दा ,ना वो संघर्ष, ना वो जज्बा, ना वो दिशा ,ना कोई नीति है जो हमारे समय दिखाई देती थी ।आजकल के छात्रनेताओं में छात्रहितों की लड़ाई लड़ना तो दूर वो छात्रहित में किसी भी मुद्दे पर गम्भीर नहीं दिखाई देते। ना कोई त्याग की भावना छात्रनेताओं में नहीं दिखाई देती। छात्रसंगठन भी मात्र चुनाव लड़ाने तक सीमित नजर आ रहे हैं
हमारे समय छात्र राजनीति छात्रहित में संघर्षरत रहती थी। विधार्थी परिषद जो वर्षभर छात्रों के बीच में काम करती थी,बडे़ बड़े आन्दोलन को छात्रहित में छात्रनेता करते थे। साथ ही सामाजिक आन्दोलन में भी बढ़चढ कर भाग लेता था। देश के सभी बड़े आन्दोलन में छात्रसंगठनों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। उतराखंड राज्य आंदोलन में विधार्थी परिषद व अन्य छात्रनेताओं का बहुत बड़ी भूमिका रही।
मुझे एम पी जी कालेज मसूरी में विधार्थी परिषद की तरफ सेअध्यक्ष पद के लिए सबसे प्रबल दावेदार माना जाता था लेकिन संगठन की जिम्मेदारी होने के नाते संगठन मुझे चुनाव लड़ने को मना कर दिया और मुझे चुनाव लड़वाने को कहा गया। पर मैने कभी संगठन के खिलाफ नहीं गया। हमने अपने कालेज में बी़काम ,को स्थाई मान्यता दिलवाई एम काम खुलवाना ।मैं महत्वपूर्ण मुद्दे पर संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारियों से सलाह मश्हूरा लेता था। धर्मपाल जी, जो आज भाजपा के झारखंड में संगठन मंत्री हैं, डा0 धनसिंह रावत जो आज उत्तराखंड में उच्च शिक्षा मंत्री हैं, तीरथ सिंह रावत जी, महेंद्र भटट जी धीरज भंडारी जी मनोज रयाल जी हमारा मार्गदर्शन करते थे। कहने का मतलब है हम मुददों पर श छात्रहित की बात करते थे।हम चुनाव को एक कार्यक्रम के रुप में लेते थे। और फिर वर्ष भर समाज और छात्रहितों के लिए काम करते थे जो आज के छात्रनेताओं में नहीं दिखाई देता संगठन जो निर्णय लेता है आज के छात्रनेता उसको नजर अंदाज करते हैं ।
गिरिराज उनियाल (पूर्व छात्र नेता ) संपादक मन मीमांसा पत्रिका