चिर निंद्रा में लीन हुए लेखनी के धनी जानेमाने पत्रकार सुरेद्र पुंडीर

जाने-माने पत्रकार, साहित्यकार एवं शिक्षक सुरेंद्र सिंह पुंडीर अब हमारे बीच में नहीं रहे । आज सुबह अपने निवास स्थान मसूरी में उनका निधन हो गया। वे 63 वर्ष के थे और अपने पीछे पत्नी और एक बेटी को छोड़ गए हैं । उनकी मौत की खबर सुनते ही पत्रकारिता जगत और मसूरी वासियों में शोक की लहर है। 


जब पहली पुस्तक निकाल रहे थे तब उन्होंने कहा था कि मुझे नहीं मालूम कि मैं कहां तक सफल होऊंगा क्योंकि जो रास्ता मैंने चुना है बहुुत सीधा और सरल तो है लेकिन उसमें कई तरह के अवरोध भी हैं। मैंने क्षमतानुसार इन अवरोधों को पार करनेे की ठानी है। पिछले तीन दशक से लेखनी के धनी  सुरेंद्र सिंह पुंडीर  ने पत्रकारिता जगत में अपनी एक अलग पहचान बनाई । 1986 से  अमर उजाला की शुरुआती टीम  के साथ  मसूरी में एक संवाददाता के तौर पर जुड़े । उसके बाद उन्होंने  कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा मसूरी टाइम्स और कई समाचार पत्र पत्रिकाओं में पुंडीर के  लेख छपते रहे ।  साहित्य के क्षेत्र में पुंडीर ने जौनपुर की राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास, जौनपुर के लोक देवता ,जौनपुर के तीज त्यौहार, यमुना घाटी के लोकगीत ,जौनपुर की लोक कथाएं ,मसूरी  के शहीद आदि पुस्तके प्रकाशित की गई। उनके  द्वारा काव्य संग्रह भी प्रकाशित किया गया राज्य आंदोलन के दौरान उनकी एक आदोलनकारी के तौर पर महत्वपूर्ण भमिका रही ।  पत्रकारिता के अलावा पुंडीर में जौनपुर ब्लाक  के राजकीय इंटर कॉलेज घोडा़खुरी  में एक अध्यापक के रूप में भी  कार्य किया। कई  बड़े सेमिनारों में पुंडीर की मौजूदगी अक्सर दिखाई देती  थी।  मेरे लिए उनका जो यूं चले जाना एक बहुत बड़ी क्षति है उन्होंने ही मुझे पत्रिकारिता के लिए  प्रेरित किया मेरी ओर से  उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि।